*मुख्तसर_कॉलम*
भारतीय मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, आज गोदी मीडिया के नाम से बदनाम हो चुका है। यह मीडिया सरकार की तारीफों में मशग़ूल है और जनता की समस्याओं को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर चुका है। ऐसी स्थिति में हमें गोदी मीडिया को कोसने के बजाय अपने अंदर झांकने की ज़रूरत है। सैकड़ों धार्मिक संगठन, हज़ारों मदरसे और दर्जनों उर्दू पत्रकारिता संस्थान होने के बावजूद उर्दू भाषा का मीडिया इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर लगभग नदारद है।
यह दुखद है कि उर्दू भाषा में एक मज़बूत, स्वतंत्र और गुणवत्तापूर्ण इलेक्ट्रॉनिक चैनल का गठन अब तक संभव नहीं हो सका। जो कुछ चैनल उर्दू के नाम पर चल रहे हैं, वे या तो हिंदी और अंग्रेज़ी मीडिया के अधीन हैं या फिर सीमित संसाधनों के साथ स्थानीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कोई उपस्थिति नहीं है, और उनके पास ऐसे संसाधन भी नहीं हैं जिनसे वे सरकार या बड़ी मीडिया संस्थाओं के प्रोपेगैंडों का प्रभावी जवाब दे सकें।
मुद्दा केवल संसाधनों की कमी का नहीं है, बल्कि धार्मिक संगठनों और मदरसों की प्राथमिकताओं का भी है। हमारे मदरसे और संगठन शैक्षिक और कल्याणकारी कार्यों पर ध्यान देते हैं, जो निस्संदेह ज़रूरी हैं, लेकिन आधुनिक मीडिया की ताक़त को समझने और इसमें निवेश करने में असफल रहे हैं। आज के दौर में मीडिया जनता की मानसिकता को प्रभावित करने का सबसे बड़ा माध्यम है। अगर उर्दू मीडिया को इस क्षेत्र में सफलता हासिल करनी है तो उसे आधुनिक तकनीक, पेशेवर दक्षता और पत्रकारिता के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ना होगा।
उर्दू चैनलों की कमी न केवल उर्दू पत्रकारिता, बल्कि मुसलमानों की सामूहिक चेतना की कमज़ोरी को भी दर्शाती है। अगर उर्दू भाषा और मुसलमानों की समस्याओं को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करना है तो हमें एक मज़बूत, स्वतंत्र और गुणवत्तापूर्ण उर्दू चैनल की आवश्यकता है, जो तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता करे और बिना किसी दबाव के जन समस्याओं को उजागर करे। इसके लिए संसाधन जुटाने, पत्रकारिता प्रशिक्षण देने और संगठित प्रयास के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है।
*✍️: आफ़ताब अज़हर सिद्दीकी*
किशनगंज, बिहार
26 दिसंबर 2024
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