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क्या भारत गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है?



*@मुख्तसर_कॉलम*


     27 मई 2025 को कर्नाटक के बंतवाल में कोलत्तमजालु जुम्मा मस्जिद के सचिव अब्दुल रहमान की नृशंस हत्या और उनके साथी कलंदर शाफी पर हुए हमले ने एक बार फिर देश के सांप्रदायिक माहौल को उजागर कर दिया है। यह अब कोई नई या असाधारण खबर नहीं रही। भीड़ हिंसा, टारगेट किलिंग और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में आम होती जा रही हैं, और राज्य मशीनरी की खामोशी या पक्षपातपूर्ण रवैया और भी खतरनाक संकेत दे रहा है।


यह वही कर्नाटक है जहाँ हाल ही में "मोहब्बत की दुकान" के नारे के साथ सत्ता हासिल की गई थी, लेकिन ज़मीनी हकीकत में वह मोहब्बत खोखली और बे-वज़न नज़र आती है। क्या केवल सरकार बदलने से हालात बदल जाते हैं? जब तक न्याय प्रणाली, कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ और राजनीतिक नेतृत्व संजीदगी से सांप्रदायिकता को कुचलने के लिए कठोर कदम नहीं उठाते, तब तक ऐसे नारे महज़ दिखावा रहेंगे।


टारगेट किलिंग एक संगठित अपराध है, जिसमें किसी की पहचान (धर्म, पहनावा, नाम या पेशा) के आधार पर जान से मार देना उद्देश्य होता है। यह महज़ व्यक्तिगत हत्या नहीं, बल्कि पूरे समाज में खौफ़ पैदा करने की एक कोशिश होती है। दुर्भाग्यवश, आज भी भारत में टारगेट किलिंग के खिलाफ कोई विशेष कानून नहीं है। भीड़ हिंसा के लिए भी अब तक संसद में कोई व्यापक कानून पारित नहीं हुआ, जबकि 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ऐसे अपराधों के लिए एक अलग कानूनी ढांचा बनाया जाए।


सवाल यह है कि क्या भारत को जानबूझकर गृहयुद्ध की ओर ढकेला जा रहा है? अगर आए दिन कोई नौजवान मारा जाए, अगर मस्जिद के इमाम, मदरसे के शिक्षक या कोई मज़दूर केवल नाम या पहचान की वजह से मौत के घाट उतार दिया जाए, और राज्य संस्थान मूकदर्शक बने रहें — तो यह किसी सभ्य लोकतंत्र की नहीं, बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय संकट की निशानी है।


अब वक्त आ गया है कि संसद एक सख्त टारगेट किलिंग विरोधी कानून बनाए, जिसमें अपराध साबित होने पर फांसी जैसी कठोर सज़ाएं तय हों, ताकि कोई भी समूह कानून से ऊपर होकर इंसानियत का खून न बहा सके। वरना जिस आग को कुछ लोग अल्पसंख्यकों के इर्द-गिर्द भड़का रहे हैं, वह कल पूरे देश को जलाकर राख कर देगी।

मेरी कौम के लोगों! खुदा के लिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए — जाग जाओ।


✍️: आफताब अज़हर सिद्दीक़ी

किशनगंज, बिहार


28 मई 2025

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