अलीगढ़ के हरदुआगंज के अलहदादपुर गाँव में जो कुछ हुआ, वो किसी बर्बर ज़माने की कहानी नहीं, बल्कि आज के भारत का डरावना सच है। सिर्फ़ इस शक में कि चार मुसलमान मीट कारोबारी गौमांस ले जा रहे हैं, एक भटकी हुई भीड़ ने उन्हें सड़क पर रोककर बेरहमी से पीटा, उनकी गाड़ी को आग के हवाले कर दिया, बिल फाड़ दिया और खुद ही क़ानून बन गई। न कोई जाँच, न कोई सबूत, न FIR, न लैब की रिपोर्ट — सिर्फ़ शक और फिर लाठी, गाली और बर्बरता का तांडव!
घायल नदीम ने लाचारगी से कहा, “हमारे पास मीट की परचियाँ थीं, मगर उन्होंने देखना तक मंज़ूर नहीं किया।” सवाल उठता है कि क्या इस देश में अब मुसलमान होना ही गुनाह बन चुका है? क्या अब किसी का पेशा, पहनावा या चेहरा ही उसकी सज़ा तय करेगा?
ये सिर्फ़ मॉब लिंचिंग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साज़िश है — अल्पसंख्यकों को डराकर जीने पर मजबूर करने की घिनौनी राजनीति है और सरकार तो मूक दर्शक बनी खड़ी है। पुलिस वही करती है जो सत्ता इशारा करती है। जब तक किसी की जान न चली जाए, वो सिर्फ़ तमाशा देखती है।
शर्म की बात तो यह है कि जो लोग खुद को "सेक्युलर" कहते हैं, जिन्होंने अल्पसंख्यकों से टोपी पहनकर वोट माँगे, वे सब आज इस ज़ुल्म पर खामोश हैं। अलीगढ़ में खून बहा और दिल्ली-लखनऊ के गलियारों में सन्नाटा छाया रहा। ये चुप्पी कायरता नहीं, बल्कि खुली राजनीतिक मक्कारी है।
अगर आज भी हमने आवाज़ नहीं उठाई, तो कल हमारे बच्चों के हाथों में न कलम बचेगी, न रोटी — सिर्फ़ डर और ग़ुलामी होगी। याद रखिए, जो ज़ुल्म पर चुप है, वह ज़ालिम के साथ है। और जो खुद को सेक्युलर कहकर चुप हैं, वे सबसे बड़े धोखेबाज़ हैं।
राहुल, अखिलेश, तेजस्वी, ममता, मायावती, केजरीवाल और प्रशांत! अब भी चुप रहिएगा या इस नफ़रत और हिंसा के ख़िलाफ़ कुछ बोलिएगा भी? — फ़ैसला आपको करना है।
✍️ आफ़ताब अज़हर सिद्दीकी
किशनगंज, बिहार
26 मई 2025
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