*@मुख्तसर_कॉलम*
ओवैसी साहब इन दिनों भारत सरकार के एक विशेष मिशन पर विदेश दौरे पर हैं। उन्हें उन प्रतिनिधि मंडलों में शामिल किया गया है जो अलग-अलग देशों में जाकर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को बेनक़ाब करेंगे, ख़ासकर पहलगाम हमले की पृष्ठभूमि में। यह हमला वाकई दुखद और निंदनीय था, और इसके ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाना ज़रूरी है। लेकिन सवाल ये उठता है कि जो ओवैसी साहब भारत में अल्पसंख्यकों के हक़ में बड़े-बड़े भाषण देते हैं, क्या वही ओवैसी विदेशों में भी भारतीय मुसलमानों की दयनीय स्थिति का ज़िक्र करेंगे?
क्या वे अरब देशों को यह बताएँगे कि भारत में बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया गया, सैकड़ों दंगों में हज़ारों मुसलमान मारे गए, और तीन तलाक़ से लेकर वक्फ़ संशोधन बिल तक कई क़ानूनों के ज़रिए मुसलमानों को दीवार से लगा दिया गया? क्या वे ये बताएँगे कि हाफ़िज़ जुनैद, पहलू ख़ान और अख़लाक जैसे लोगों को सिर्फ़ गाय के नाम पर मार डाला गया? क्या वे अरबों को ये सच बताएँगे कि अलकबीर और अन्य मांस निर्यातक कंपनियाँ हिंदुओं की हैं, और वही सरकार जो गाय के नाम पर मुसलमानों की हत्या कराती है, उन्हीं गायों का मांस बेचकर अरबों रुपये कमाती है?
सच्चाई ये है कि “वहाँ के ओवैसी” शायद “यहाँ के ओवैसी” से बिलकुल अलग होंगे। वहाँ वे मोदी सरकार की तारीफ़ करेंगे, भारतीय कार्रवाई की सराहना करेंगे, और पाकिस्तान की आतंकवाद नीति पर बोलेंगे। लेकिन क्या वे अहमदाबाद में बुलडोज़ किए गए मुसलमानों के घरों, रेहड़ी-पटरी वालों पर लगाई गई पाबंदियों, और बेगुनाहों की गिरफ्तारियों का ज़िक्र भी करेंगे? शायद नहीं!
कहीं ऐसा न हो कि ओवैसी साहब जानबूझकर या अनजाने में उसी सरकार के प्रवक्ता बन जाएँ, जिसकी नीतियाँ खुद मुसलमानों को असुरक्षित बना रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा ज़रूरी है, लेकिन राष्ट्रीय न्याय भी उतना ही अहम है। अगर ओवैसी वाकई मुसलमानों के रहनुमा हैं, तो उन्हें विदेशों में भी वही सच बोलना चाहिए जो वे हैदराबाद की रैलियों में बोलते हैं। वरना जनता को दोहरे चेहरे पहचानने में देर नहीं लगती।
*✍️: आफ़ताब अज़हर सिद्दीक़ी*
किशनगंज, बिहार
27 मई 2025
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