मौलाना कलीम सिद्दीक़ी : शांति और इंसानियत का संदेश देने वाले
मौलाना कलीम सिद्दीक़ी का नाम भारत में धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है। उनका जीवन धार्मिक शिक्षा और इंसानियत के लिए समर्पित रहा है। उनके बयानों और प्रवचनों में हमेशा शांति, सद्भाव और भाईचारे का संदेश होता है। उन्होंने कभी किसी भड़काऊ या नफरत फैलाने वाले बयान का समर्थन नहीं किया। इसके बावजूद उन्हें धर्मांतरण जैसे गंभीर आरोपों में फंसाया गया और जेल भेजा गया।
सवाल यह है कि क्या सच में कोई ऐसा व्यक्ति सामने आया है जिसने कहा हो कि मौलाना ने उसे जबरन या अवैध रूप से धर्मांतरित किया है? अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि जिन लोगों ने इस्लाम अपनाया, उन्होंने अपनी मर्ज़ी से ऐसा किया। क्या किसी भी आरोपी के खिलाफ किसी ठोस सबूत के अभाव में उन्हें दोषी ठहराना न्यायोचित है?
यति नरसिंहानंद और भड़काऊ बयानबाज़ी
दूसरी तरफ, यति नरसिंहानंद जैसे लोगों के बयान आए दिन मीडिया में दिखाई देते हैं, जिनमें खुलकर नफरत फैलाने की बातें होती हैं। यति नरसिंहानंद ने कई मौकों पर मुसलमानों के खिलाफ हिंसक और भड़काऊ भाषण दिए हैं। उनके खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें जेल भेजने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई।
यह सवाल उठता है कि एक तरफ एक शांतिप्रिय मौलाना को जेल में डाल दिया जाता है और दूसरी तरफ एक व्यक्ति जो सार्वजनिक रूप से नफरत फैलाता है, वह खुलेआम घूम रहा है। क्या यह भेदभाव नहीं है?
भेदभाव के प्रमाण: अलग-अलग मानदंड
रामभगत गोपाल, सुरेश चव्हाणके, और रामगिरी जैसे लोगों के खिलाफ भी कई गंभीर आरोप लगे हैं। ये लोग लगातार मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत फैलाने और दंगे भड़काने का प्रयास करते रहे हैं। लेकिन इन लोगों के खिलाफ कानू का सख्त इस्तेमाल नहीं किया गया।
इससे साफ तौर पर यह महसूस होता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में भेदभाव किया जा रहा है। एक ही देश में, एक ही कानून के तहत मुसलमानों और हिंदुओं के खिलाफ कार्रवाई का पैमाना अलग-अलग क्यों है? यह सिर्फ मौलाना कलीम सिद्दीकी का मामला नहीं है, बल्कि यह उस बड़े भेदभाव का प्रतीक है जो आज भारत में मुसलमानों के खिलाफ किया जा रहा है।
धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय हर एक नागरिक का अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो। मौलाना कलीम सिद्दीक़ी जैसे धर्म गुरुओं को सिर्फ इसलिए निशाना बनाना कि वे मुसलमान हैं और इस्लाम का प्रचार करते हैं, कहीं न कहीं न्याय के मापदंडों पर सवाल उठाता है।
वहीं, यति नरसिंहानंद जैसे लोग जो खुलेआम नफरत फैलाते हैं, आज़ाद घूम रहे हैं। यह भेदभावपूर्ण न्याय प्रणाली केवल समाज में विभाजन और असंतोष को बढ़ावा देगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत वास्तव में सभी के लिए समान न्याय देने वाला देश है, या फिर यहाँ धर्म के आधार पर न्याय का पैमाना बदलता रहता है?
सच्चे लोकतंत्र और न्याय के लिए ज़रूरी है कि हर व्यक्ति के साथ समानता से बर्ताव हो, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। मौलाना कलीम सिद्दीक़ी का मामला एक बार फिर इस बात की याद दिलाता है कि हमें भेदभाव के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और न्याय की मांग करनी चाहिए।
✍️आफताब अज़हर सिद्दीक़ी
प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय ओलमा
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