प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौलाना आफताब अज़हर सिद्दीकी प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल, मास्टर मोहम्मद यूसुफ कोल्था, मौलाना अब्दुल मुन्तकिम फुरकानी विधानसभा अध्यक्ष, मौलाना अब्दुल वाहिद बुखारी जिला सचिव, कारी मुहीत अख्तर अर्राबाड़ी, मास्टर आसिफ, तसव्वुर आलम और मोहम्मद तनवीर आदि ने भाग लिया।
उलेमा काउंसिल के नेताओं ने इस अवसर पर सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री से मांग की कि वे अनुच्छेद 341 में मौजूद धार्मिक प्रतिबंध को समाप्त कर यह साबित करें कि वे "सबका साथ, सबका विकास" के नारे पर वास्तव में अमल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रतिबंध न केवल संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि समानता और न्याय के भी विपरीत है।
शुराकाओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस प्रतिबंध के खत्म होने से देश के सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त होंगे और सामाजिक न्याय की स्थापना संभव हो सकेगी। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 341 के तहत धार्मिक भेदभाव को खत्म करने की आवश्यकता है ताकि देश के संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूती मिल सके।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उलेमा काउंसिल ने आगे कहा कि इस मांग को पूरा करने से सरकार का रुख़ अल्पसंख्यकों के प्रति मज़बूत होगा और उनके अधिकारों की सुरक्षा संभव हो सकेगी। उलेमा काउंसिल ने इस विरोध के ज़रिए अपनी मांग को मज़बूती से पेश किया और सरकार से तुरंत कार्रवाई की अपेक्षा जताई।
यह स्पष्ट रहे कि 10 अगस्त को ही जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने अनुच्छेद 341 को धार्मिक रंग देने का काम किया था, जिसके खिलाफ राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल हर 10 अगस्त को "अन्याय दिवस" के रूप में मनाती है और इस अनुच्छेद से धार्मिक प्रतिबंध हटाने की मांग करती है ताकि मुसलमानों में जो पिछड़े वर्ग हैं उन्हें भी आरक्षण मिल सके।
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