बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद या ईदगाहों में ईद की नमाज़ अदा करने के बाद जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ईद-उल-अज़हा 12वें महीने ज़ुल हिज्जा के 10वें दिन मनाई जाती है।
इस्लाम के जानकार क़ारी फिरोज़ आलम ने अपने बयान में कहा कि बकरीद का त्योहार केवल बकरों की कुर्बानी देने का ही नाम नहीं हैं बल्कि कुर्बानी का मकसद है अल्लाह को राज़ी करने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ को भी त्याग कर देना। इसी दिन दुनिया भर के मुसलमान अरब पहुंच कर हज करते हैं। हज की वजह से भी इस पवित्र त्योहार की अहमियत बढ़ जाती है।
अल्लाह को राजी करने के लिए जानवरों की कुर्बानी देना तो केवल जरिया है जबकि अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुंचता है, वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल तरीके से कमाया हुआ धन खर्च करे। कुर्बानी का सिलसिला ईद के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है।
कुर्बानी के जानवरों की खाल का पैसा मदरसों की मदद के लिए दिया जाता है।
बक़रीद के दिनों में हज़रत मोहम्मद (सअव) के अनुसार क़ुर्बानी ही श्रेष्ठ काम है।
क़ारी फिरोज़ आलम ने कहा कि कुर्बानी का त्यौहार ईश्वर के लिए जीने का संदेश देता है यानी बंदा यह समझे कि उसके पास जो कुछ भी है वह उसका अपना नहीं है बल्कि सब कुछ ऊपर वाले का दिया हुआ है और अल्लाह के दिए हुए से अल्लाह जब चाहे कुछ भी ले सकता है, हमारी कुल संपत्ति हमारी ज़मीन, हमारा घर, हमारी प्रॉपर्टी हमारी औलाद यहां तक कि हमारी जान यह सब कुछ अल्लाह की अमानत है अगर हम अल्लाह की अमानत का सही हक अदा करेंगे तो अल्लाह पाक हमें मरने के बाद जन्नत और स्वर्ग में दाखिल करेगा।
कुर्बानी हमें यह भी सिखाता है कि हम केवल जानवर की कुर्बानी न दें बल्कि हमारे अंदर जो बुराइयां हैं उन सब की कुर्बानी दें। झूठ चुगल खोरी धोखेबाजी दूसरों को सताना जब तक हम इन सब बुराइयों की कुर्बानी नहीं देंगे उस समय तक हम सही मायने में अल्लाह के लिए कुर्बानी देने वाले नहीं बन सकेंगे। असल कुर्बानी वही है जिससे अल्लाह राज़ी हो।।
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