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संसद में वित्त मंत्री महोदया द्वारा बजट पेश कर दिया गया। जानिए इस बजट में आपका कितना हिस्सा है?

 


      इस बजट में यदि आम व्यक्ति के लिए चर्चा की जाये, तो इसमें उन्हें कुछ नहीं मिला है।  न टैक्स में कोई छूट, न "एफडी ब्याज"  में कोई बढ़ोत्तरी ?  उल्टा जो व्यक्ति शेयर मार्केट निवेशक है, उस  पर एक बड़ा भार डाल दिया गया ? 


     छोटे निवेशक शेयर मार्केट में रिस्क लेकर अपना रुपया लगाते है, जब थोड़ा बहुत प्रोफिट हो जाता है, तो ये भी सरकार को हजम नहीं हो रहा ?  इसीलिए अब सरकार "शार्ट"  व  "LONG"  टर्म दोनों पर ज्यादा  "टीडीएस"  काटेगी ?


      सरकार उन उघोगपतियों पर "टीडीएस"  क्यों नहीं लगाती, जो कंपनी के प्रमोटर है ?  और अरबों-खरबों के शेयरों के मालिक है ?   


    चूंकि वह अपने अरबों-खरबों के शेयर बेचते ही नहीं है, इसीलिए साल में अरबों-खरबों उनका लाभ बढ़ता रहता है, फिर भी सरकार उनसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं वसूल पाती ।  ये अमीरों का टैक्स बचाने का अनूठा तरीका है।  जिसे आम आदमी आज तक जान नहीं पाया। 


    यह बजट पेश तो पूरे भारत के लिए किया गया था,  परन्तु ऐसा लग रहा था, कि जैसे ये  "बिहार"  व  "आंध्र प्रदेश"  का बजट हो ?  बजट का एक बड़ा भाग इन दोनों राज्यों को दे दिया गया।  


    बिहार व आंध्र प्रदेश की जनता बहुत भाग्यशाली है, कि उन्हें  "चन्द्र बाबू नायडू"  व   "नितीश कुमार"  जैसे मुख्यमंत्री मिले ?  वह कम से कम अपने प्रदेश के बारे में सोचते तो है ? और उसके लिए संघर्ष भी करते है। 


     एक हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी है, जो अभी थोड़े समय पहले प्रदेश के विकास हेतु हर गली, हर दुकान, व हर ठेले पर "हिंदू-मुसलमान"  का नाम लिखवा रहे थे ?  


    अगर योगी जी को प्रदेश की थोड़ी भी चिंता होती, तो केन्द्र सरकार से प्रदेश के लिए ज़रुर कुछ मांगते ?  जब कुछ नहीं मांगा ?  तो केन्द्र ने भी उन्हें  "बाबा जी का ठुल्लू"  पकड़ा दिया।  


      आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है।  उत्तर प्रदेश को इसीलिए कुछ नहीं मिला, क्योंकि न तो प्रदेश के मुख्यमंत्री को विकास की चिंता है, और न प्रदेश की जनता को ?  जब पूरे साल गली, दुकानों व ठेलों पर हिंदू-मुसलमानों के नाम  "लिखने"  व "हटाने"  से फुर्सत मिलेगी, तब तो आगे का खाका तैयार हो पायेगा ?  


      कुल मिलाकर ये बजट सिर्फ दो राज्यों को केन्द्र में रखकर बनाया गया बजट था।  बाकी राज्य अपनी फूटी किस्मत का रोना रोते हुए अगले बजट का इंतजार करें, शायद यहीं उनकी नियति में लिखा है।

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