*किशनगंज | विशेष संवाददाता*
आज किशनगंज स्थित जामिया इमाम बुखारी के प्रांगण में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे। इस अवसर पर एक जनसभा का आयोजन किया गया था, जिसे "गर्व से मुस्लिम प्रतिनिधित्व" के नाम पर प्रचारित किया गया। लेकिन कार्यक्रम स्थल पर नजारा इसके बिल्कुल उलट था — सैकड़ों कुर्सियाँ खाली रहीं और जनसभा में स्थानीय लोगों की उपस्थिति नगण्य रही।
गौरतलब है कि आरिफ मोहम्मद खान को मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि कहकर पेश किया जाता है, लेकिन उनकी विचारधारा, वक्तव्य और स्पष्ट रूप से लिबरल और संघ समर्थक झुकाव के कारण बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी उन्हें संदेह की दृष्टि से देखती है। NRC, CAA और मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे मुद्दों पर उनके बयान लगातार मुस्लिम समाज की भावनाओं के विपरीत रहे हैं।
इस कार्यक्रम में स्थानीय मुस्लिम समाज की उदासीनता यह दर्शाती है कि आम मुसलमान उन्हें अपना रहनुमा नहीं मानता। यह अपने आप में एक बड़ा संकेत है कि ज़मीनी स्तर पर राज्यपाल की लोकप्रियता शून्य के करीब है।
जब एक मुस्लिम राज्यपाल के स्वागत में 200 लोग भी एकत्र न हो सकें, तो यह गंभीर प्रश्न खड़ा करता है — क्या वे सचमुच मुसलमानों के प्रतिनिधि हैं, या फिर सत्ता की ओर झुकाव रखने वाले एक राजनीतिक चेहरे?
कार्यक्रम के आयोजन में भारी खर्च और पुलिस बल की तैनाती के बावजूद जनता की बेरुख़ी ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रतिनिधित्व सिर्फ नाम का नहीं, भावना का भी होना चाहिए।
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